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कारक की परिभाषा
संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस भी रूप से उसका सम्बन्ध वाक्य के किसी अन्य शब्द के साथ जाना जाए, तो उसे कारक कहते हैं। वाक्य में प्रयोग किये जाने वाले शब्द आपस में सम्बद्ध होते हैं। क्रिया के साथ संज्ञा अथवा सर्वनाम का सीधा सम्बन्ध ही कारक होता है। कारक को दिखने करने के लिये संज्ञा और सर्वनाम के साथ जिन चिन्हों के प्रयोग किये जाते हैं, उन्हें विभक्तियाँ कहते हैं। जैसे – पेड़ पर फल लगते हैं। इस वाक्य में पेड़ एक कारक हैं और 'पर' कारक सूचक अथवा विभक्ति है।
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कारक के भेद कितने होते है ?
कारक के मुख्यता आठ भेद होते है जो कि निम्न प्रकार से हैं -
कर्ता कारक - संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध होता हो या क्रिया करने वाले का पता चलता हो , उसे कर्ता कारक कहते हैं। इसका चिन्ह ’ने’ कभी कर्ता के साथ लगा होता है, और कभी नहीं होता है,अर्थात छिपा होता है ।
कर्ता कारक के उदाहरण -
- महेश ने पुस्तक पढ़ी।
- राजू खेलता है।
- चिड़िया उड़ती है।
- रोहन ने पत्र पढ़ा।
कर्मकारक - संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप पर क्रिया का प्रभाव पड़े, उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म के साथ ’को’ विभक्ति के रूप में आती है। यह इसकी सबसे बड़ी पहचान होती है। कभी-कभी वाक्यों में ’को’ विभक्ति का पता नहीं चलता है।
- कर्म कारक के उदाहरण –
- उसने अनिल को पढ़ाया।
- सोहन ने चोर को पकड़ा।
- पूजा पुस्तक पढ़ रही है।
- राम ने श्याम से कहा।
- सोहन ने कविता से पूछा।
करण कारक – जिस साधन या जिसके द्वारा कोई क्रिया पूरी की जाती है, वह संज्ञा करण कारक कहलाती हैं। इसकी पहचान 'से' अथवा 'द्वारा' होती है।
- करण कारक के उदाहरण –
- सोनू गेंद से खेलता है।
- मोहन चोर को लाठी द्वारा मारता है।
- यहाँ पर 'गेंद से' और 'लाठी द्वारा' करण कारक है।
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सम्प्रदान कारक – जिसके लिए क्रिया की जाती है या होती है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। इसमें कर्म कारक 'को' का भी प्रयोग होता है, लेकिन उसका अर्थ 'के लिये' होता है।
- करण कारक के उदाहरण –
- अनिल रवि के लिए गेंद लाता है।
- सब पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं।
- माँ बेटे को खिलौना देती है।
अपादान कारक – अपादान का अर्थ होता है - 'अलग होना'। जिस भी संज्ञा या सर्वनाम से किसी वस्तु का अलग होना ज्ञात होता है , उसे अपादान कारक कहते हैं। करण कारक की तरह ही अपादान कारक का चिन्ह 'से' है, लेकिन करण कारक में इसका अर्थ सहायता से होता है और अपादान में 'अलग होना' होता है।
- अपादान कारक के उदाहरण –
- हिमालय से गंगा नदी निकलती है।
- पेड़ से पत्ता गिरता है।
- रमेश छत से गिरता है।
सम्बन्ध कारक - संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु का सम्बन्ध दूसरी वस्तु से जाना जाता है तो ,उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं।
इसकी मुख्य पहचान है – 'का', 'की', के से होती है।
- सम्बन्ध कारक के उदाहरण –
- मोहन की किताब मेज पर है।
- गीता का घर दूर है।
अधिकरण कारक – संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के आधार का पता लगता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसकी मुख्य पहचान 'में' , 'पर' से होती है ।
- अधिकरण कारक के उदाहरण –
- माँ घर पर है।
- पक्षी घोंसले में है।
- गाडी सड़क पर खड़ी है।
सम्बोधन कारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी को पुकारने तथा सावधान करने का बोध होता हो, उसे सम्बोधन कारक कहते हैं। इसका सम्बन्ध न क्रिया से होता है और न किसी अन्य शब्द से होता है। यह वाक्य से अलग होता है। इसका कोई कारक चिन्ह भी नहीं होता है।
- सम्बोधन कारक के उदाहरण –
- सावधान !
- रानी को मत मारो।
- रीमा ! देखो कैसा सुन्दर दृश्य है।
- लड़के ! जरा इधर आ।